Monday, January 29, 2018

एक लड़की थी

एक लड़की थी
नादान, बे-परवाह
किसी आज़ाद परिंदे सी
मेरी ही गली में रहती थी
सुना था
मुझसे बेपनाह मुहब्बत करती थी

मैं भी जाने अनजाने, चाहने लगा था उसे
अक्सर सुबहो-शाम
उसके घर के चक्कर लगाता था
कभी तो आएगी खिड़की पर
यही सोच कर
घण्टो इंतज़ार करता था

वो भी जान गयी थी, शायद
मेरी आँखों में पढ़ ली थी
उसने मुहोब्बत
अब वो भी मेरा इंतज़ार करती थी
मेरी ही तरह
उसे भी मेरी आदत हो चली थी

फिर
वक़्त का तकाज़ा हुआ
रोजी रोटी की जद्दोज़हद में
घर बदला, गली बदली
शहर छूटा 
अब बस इंतज़ार है, मुझे
उसे, इंतज़ार है या नहीं
पता नहीं

~ प्यार
२९/०१/२०१८  

Tuesday, January 23, 2018

याद आता है

याद आता है इक शक़्स
रह रह कर, बार बार
जिसे इक उम्र पहले
किसी मोड़ पर भूल आया था

क्या वो अब भी वहीं ठहरा होगा?
क्या वो कहीं आगे बढ़ गया होगा?
क्या वो भी भूल गया होगा मुझे?
कई सवाल है

जवाब कोई नहीं

यादों की कश्तियों पर हो सवार
जब गुज़रता हूँ उन पुरानी गलियों से
जर्जर हुए उस मकान से
उसकी हसी अभी भी सुनाई देती है

वो झरोखे पे आकर बालों को सुखाना
फ़िक्र से टहलते हुए दाँतो में उंगलियां दबाना
और भी ऐसे कई मंज़र
आँखों के आगे से गुज़र जाते है 

मैं कई बार निकल पड़ता हूँ,
उसे ढूंढने, मगर 

सोचता हूँ
जो कभी वो फिर मिल गया
तो क्या जवाब दूंगा
कैसे भूल आया था मैं, उसे
इक उम्र पहले, उस मोड़ पर

~ प्यार
१९/०१/२०१८

एक चेहरा है

एक चेहरा है
आँखों में ठहरा हुआ
अब्र है, ख़्वाब है
पता नहीं

पलकें काजल से भरी हुयी
थोड़ी नम भी है शायद
जैसे
कोई बादल फट के
इन मे आके समा गया हो

माथे पर इक बिंदी है
आधा चाँद और
उसपर इक छोटा सितारा
यूँ मालुम होता है,
इस चाँद सितारे में
सारा वक़्त सिमट के रुक गया हो

लब सुर्ख़ है
कांपते है, थरथराते है,
जैसे कुछ लफ्ज़ है अटके हुए
कोई सुनने को हाँ कर दे 
तो अभी इक नज़्म बन जाए

कंधे तक लम्बे बालो से
कानो के झुमके ढक हुए है
इक लट इतराती हुयी, बैठी है
अलग से
जैसे इंतज़ार हो किसी का   

पढ़ना चाहता हूँ फिर
वही चेहरा,
वही चेहरा जो
आँखों में ठहरा हुआ है
अब्र है, ख्वाब है
पता नहीं

~ प्यार

१९ /०१ / २०१८

एक लड़की थी

एक लड़की थी नादान, बे-परवाह किसी आज़ाद परिंदे सी मेरी ही गली में रहती थी सुना था मुझसे बेपनाह मुहब्बत करती थी मैं भी जाने अनजाने, चाहन...