एक चेहरा है
आँखों
में ठहरा हुआ
अब्र
है, ख़्वाब है
पता
नहीं
पलकें
काजल से भरी हुयी
थोड़ी
नम भी है शायद
जैसे
कोई
बादल फट के
इन मे
आके समा गया हो
माथे
पर इक बिंदी है
आधा
चाँद और
उसपर
इक छोटा सितारा
यूँ
मालुम होता है,
इस चाँद सितारे में
सारा
वक़्त सिमट के रुक
गया हो
लब सुर्ख़ है
कांपते
है, थरथराते है,
जैसे
कुछ लफ्ज़ है अटके
हुए
कोई
सुनने को हाँ कर
दे
तो अभी इक नज़्म
बन जाए
कंधे
तक लम्बे बालो से
कानो
के झुमके ढक हुए है
इक लट इतराती हुयी,
बैठी है
अलग
से
जैसे
इंतज़ार हो किसी का
पढ़ना
चाहता हूँ फिर
वही
चेहरा,
वही
चेहरा जो
आँखों
में ठहरा हुआ है
अब्र
है, ख्वाब है
पता
नहीं
~ प्यार
१९
/०१ / २०१८
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