Monday, January 29, 2018

एक लड़की थी

एक लड़की थी
नादान, बे-परवाह
किसी आज़ाद परिंदे सी
मेरी ही गली में रहती थी
सुना था
मुझसे बेपनाह मुहब्बत करती थी

मैं भी जाने अनजाने, चाहने लगा था उसे
अक्सर सुबहो-शाम
उसके घर के चक्कर लगाता था
कभी तो आएगी खिड़की पर
यही सोच कर
घण्टो इंतज़ार करता था

वो भी जान गयी थी, शायद
मेरी आँखों में पढ़ ली थी
उसने मुहोब्बत
अब वो भी मेरा इंतज़ार करती थी
मेरी ही तरह
उसे भी मेरी आदत हो चली थी

फिर
वक़्त का तकाज़ा हुआ
रोजी रोटी की जद्दोज़हद में
घर बदला, गली बदली
शहर छूटा 
अब बस इंतज़ार है, मुझे
उसे, इंतज़ार है या नहीं
पता नहीं

~ प्यार
२९/०१/२०१८  

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