याद
आता है इक शक़्स
रह रह कर, बार
बार
जिसे
इक उम्र पहले
किसी
मोड़ पर भूल आया
था
क्या
वो अब भी वहीं
ठहरा होगा?
क्या
वो कहीं आगे बढ़
गया होगा?
क्या
वो भी भूल गया
होगा मुझे?
कई सवाल है
जवाब
कोई नहीं
यादों
की कश्तियों पर हो सवार
जब गुज़रता हूँ उन पुरानी
गलियों से
जर्जर
हुए उस मकान से
उसकी
हसी अभी भी सुनाई
देती है
वो झरोखे पे आकर बालों
को सुखाना
फ़िक्र
से टहलते हुए दाँतो में
उंगलियां दबाना
और भी ऐसे कई
मंज़र
आँखों
के आगे से गुज़र
जाते है
मैं
कई बार निकल पड़ता
हूँ,
उसे
ढूंढने, मगर
सोचता
हूँ
जो कभी वो फिर
मिल गया
तो क्या जवाब दूंगा
कैसे
भूल आया था मैं,
उसे
इक उम्र पहले, उस
मोड़ पर
~ प्यार
१९/०१/२०१८
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